13 जनवरी 2000 से प्रकाशित

हूल दिवस : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संथालों के बलिदान को याद कर दी श्रद्धांजलि

 नई दिल्ली 2025-06-30

ब्रिटिश ईस्‍ट इंडिया कंपनी के विरूद्ध स्‍वाधीनता और न्‍याय की लड़ाई में संथाल लोगों द्वारा दिए गए बलिदान को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आज हूल दिवस मनाया जा रहा है। 30 जून, 1855 को शुरू हुए इस व्रिदोह को संथाल हूल के नाम से भी जाना जाता है। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की दमनकारी नीतियों और साहूकारों द्वारा किए जाने वाले शोषण के विरूद्ध एक महत्‍वपूर्ण विद्रोह था।

अपनी बहनों फूलों और झानो के साथ मिलकर सिद्धू और कान्‍हू मुर्मू के नेतृत्‍व में संथालों ने अन्‍याय और अपने अधिकारों की लड़ाई में जनजातीय युवाओं की बड़ी संख्‍या को प्रेरित किया। यह विद्रोह भारत के स्‍वाधीनता संग्राम में एक महत्‍वपूर्ण घटना थी। इस विद्रोह को जनजातीय अधिकारों पर प्रभावशाली और जमीनी स्‍तर के नेतृत्‍व के लिए याद किया जाता है।

जबकि इस विद्रोह को अंतत: दबा दिया गया। इस कारण 1876 के संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम और 1908 के छोटानागपुर काश्‍तकारी अधिनियम व्‍यवस्‍था लागू हुई। इसका उद्देश्‍य जनजातीय भूमि अधिकारों और सांस्‍कृतिक स्‍वायत्तता की रक्षा करना था।