विकसित भारत के लिए भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बदलाव - श्री रवनीत सिंह बिट्टू

लेखक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री है

लेख मे प्रस्तुत विचार लेखक के स्वंय के हैं 

हमारे देश की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक प्रकाश-पुंज की तरह है, जो विकसित भारत की दिशा में हमारे द्वारा उठाए जा रहे कदमों के रूप में प्रतिबिम्बित होता है। अब यह क्षेत्र केवल अर्थव्यवस्था में योगदानकर्ता भर नहीं रह गया है, बल्कि तेजी से भारत की विकास गाथा का आधार बनता जा रहा है। माननीय प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में नीतियों, पहलों और बुनियादी ढांचे के विकास के बेहतरीन मिश्रण ने इस क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है, जिससे यह वैश्विक मंच पर एक मजबूत ताकत बनकर उभरा है। वर्तमान में भारत 3.7 ट्रिलियन डॉलर वाली समृद्ध अर्थव्यवस्था होने का दावा करता है, जिसका महत्वाकांक्षी लक्ष्य 2047 में देश की स्वतंत्रता की शताब्दी तक 30-35 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनना है।

भारत में हो रहे बदलावों के मूल में इसकी समृद्ध कृषि-जलवायु विविधता है, जो हमारे किसानों को विभिन्‍न प्रकार की विशिष्‍ट फसलें उगाने में सक्षम बनाती है। दालें, मोटे अनाज, दूध, गेहूं, चावल तथा फलों और सब्जियों के उत्पादन में वैश्विक स्‍तर पर अग्रणी देश होने के रूप में, भारत के पास मूल्य वर्धन के लिए संसाधनों का अद्वितीय आधार मौजूद है। हमारे मेहनतकश किसानों द्वारा सावधानीपूर्वक पोषित इस कृषि प्रचुरता ने नवाचार और उद्यमिता के दौर को जन्म दिया है, जिससे उन्‍नतिशील खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का उदय हुआ है।

यह क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास का आधार बन चुका है, जो रोजगार के अवसरों के सृजन, तकनीकी प्रगति और बाजार के नए अवसरों के निर्माण के माध्यम से विकास को गति दे रहा है। भारत शीर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बड़ी और सबसे युवा कामकाजी आबादी होने का भी दावा करता है, जिससे इस महत्वपूर्ण परिवर्तन को और बढ़ावा मिलता है। उन्नत प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके, इस उद्योग ने फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने, उत्पाद की शेल्फ लाइफ बढ़ाने और किसानों को उनके प्रयासों के लिए बेहतर रिटर्न दिलाना सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र जैसे-जैसे विकसित हो रहा है, यह न केवल गुणवत्ता के अंतर्राष्ट्रीय मानकों की कसौटी पर खरा उतर रहा है, बल्कि वैश्विक उपभोक्ताओं की लगातार बदलती पसंद और प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए अपनी पेशकशों में विविधता भी ला रहा है। इस प्रकार कृषि और खाद्य प्रसंस्करण के बीच का घनिष्ठ सामंजस्‍य आर्थिक प्रगति के शक्तिशाली साधन का रूप ले चुका है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि हमारे किसान और कृषि देश के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और यह सुनिश्चित करते हुए कि भारत के कृषि उत्पाद दुनिया के कोने- कोने में संवर्धित मूल्य और गुणवत्ता के साथ पहुंचे। ऊर्जावान और युवा कार्यबल द्वारा समर्थित इस एकीकरण के माध्यम से, हम इस सशक्‍त, वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी क्षेत्र के उद्भव का साक्षी बन रहे हैं जो भारत को एक समृद्ध और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जाने के लिए तत्‍पर है।

एक महत्‍वपूर्ण बदलाव के रूप में, कोविड-19 महामारी ने इस क्षेत्र के प्रभावशाली लचीलेपन को दर्शाया, जो प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के अनुरूप तेजी से अनुकूलित हुआ। रेडी-टू-ईट, रेडी-टू-कुक और मूल्य-वर्धित उत्पादों की ओर धीरे-धीरे बदलाव ने खाद्य सुरक्षा और पोषण में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। भारत में खाद्य और पोषण सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से निपटने, सुविधा प्रदान करने, लंबी शेल्फ लाइफ और दूरदराज के क्षेत्रों तक बेहतर पहुंच प्रदान करने के लिए मजबूत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र आवश्यक है। यह किसानों के लिए बेहतर दामों की प्राप्ति भी सुनिश्चित करते हुए और बाजार के अवसरों में वृद्धि करते हुए, जीडीपी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है और आजीविका में सहायता प्रदान करता है।

इस संबंध में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमओएफपीआई) सबसे अग्रणी है, जो पीएम किसान संपदा योजना (पीएमकेएसवाई) जैसे प्रमुख कार्यक्रमों का समर्थन कर रहा है। यह पहल अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे का विकास करके और खेत से लेकर खुदरा तक आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन को अनुकूलित करके इस क्षेत्र को बदल रही है। इन प्रयासों को पूर्णता प्रदान करते हुए प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकीकरण (पीएमएफएमई) योजना प्रौद्योगिकी उन्नयन, क्षमता निर्माण और विपणन में सहायता के माध्यम से सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के विकास को बढ़ावा देती है। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआईएस) वृद्धिशील बिक्री से जुड़े वित्तीय पुरस्कारों की पेशकश करके घरेलू विनिर्माण एवं निर्यात वृद्धि को और बढ़ावा देती है। इसके अतिरिक्त, नाबार्ड के अंतर्गत 2000 करोड़ रुपये का विशेष अवसंरचना कोष इस क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूती प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समन्वित दृष्टिकोण खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और संबंधित क्षेत्रों को उन्‍नत बनाने के लिए एक व्यापक रणनीति को रेखांकित करता है, जो मजबूत, एकीकृत और दूरंदेशी विकास पथ सुनिश्चित करता है।

भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और इसका जनसांख्यिकीय लाभांश खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए नई ऊंचाइयों को छूने के अनूठे और अभूतपूर्व अवसरों का सृजन करता है। सरकार के महत्‍वपूर्ण कर संबंधी प्रोत्साहनों, कारोबार करने में सुगमता की सुव्यवस्थित पहल और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास सहित दूरदर्शी व्यवसाय समर्थक सुधारों ने निवेश और विकास के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा दिया है। यह सहयोगपूर्ण परिदृश्य न केवल वैश्विक ध्यान आकर्षित करता है बल्कि भारत को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में नवाचार और विस्तार के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में भी स्थापित करता है।

वर्ष 2023 में पिछले संस्करण की शानदार सफलता के बाद, मंत्रालय 19 से 22 सितंबर 2024 तक वर्ल्‍ड फूड इंडिया के तीसरे संस्करण का आयोजन कर रहा है। इस आयोजन में खाद्य उद्योग के हर पक्ष से जुड़े हितधारक विचारों का आदान-प्रदान करने, अवसरों का अन्‍वेषण करने और इस महत्वपूर्ण क्षेत्र के समग्र विकास में योगदान देने के लिए एक साथ आएंगे। यह एक अनोखा सम्मेलन होगा जिसमें दुनिया भर के खाद्य इकोसिस्‍टम से जुड़े निर्माता, उत्पादक, निवेशक, नीति-निर्माता और संगठन शामिल होंगे।

वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 एक ऐसा मंच है, जहां हितधारक नवाचारों का अन्‍वेषण करने, साझेदारी बनाने और टिकाऊ खाद्य भविष्य की दिशा में मार्ग प्रशस्‍त करने के लिए एकत्रित होते हैं। आइए, हम अपने सामने मौजूद अवसरों का लाभ उठाएं तथा अधिक समृद्ध और लचीली खाद्य प्रणाली की दिशा में ऐसी यात्रा की शुरुआत करें, जो मूल्य श्रृंखला में सभी हितधारकों को लाभान्वित करे। सामंजस्‍य के इस दौर में, हम न केवल एक उद्योग को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर रहे हैं, बल्कि एक ऐसे भविष्य के साझा विजन को भी अंगीकार कर रहे हैं जहां नवाचार, स्थिरता और समृद्धि हमारे देश के कोने-कोने का उत्‍थान करे।